ये रिश्ते
जब साथ हमारा छुट गया, विश्वास का धागा टूट गया
हर खवाब नया बुनता था जो, सपनो का सांचा टूट गया
जीवन तो समंदर जैसा है, तूफान का भी आना वाजिब है
जो पार लगाने वाला था, माझी वो हमसे रूठ गया
खुशिया और गम दोनों चुन के, रिश्तो की माला गुथी थी
इक छोर पकड़ में खड़ा रहा, वो छोर छुड़ा कर चला गया
हम दोनों थे दो रंग मगर, मिलके फिर हम एक बने
मैं अब भी तुमसे रंगा हुआ, पर रंग हमारा छुट गया
***
रिश्ते भी पौधो जैसे हैं, दोनों में कोई फर्क नही
दोनों को लगती भूख प्यास, दोनों को बनाना पड़ता है
पौधो को बीमारी से जैसे, रिश्तो को ज़माने से
कैसे भी हो मुमकिन, दोनों को बचाना पड़ता है
***
अविनाश सिंह राठौर
१४ सितम्बर २०१२
हर खवाब नया बुनता था जो, सपनो का सांचा टूट गया
जीवन तो समंदर जैसा है, तूफान का भी आना वाजिब है
जो पार लगाने वाला था, माझी वो हमसे रूठ गया
खुशिया और गम दोनों चुन के, रिश्तो की माला गुथी थी
इक छोर पकड़ में खड़ा रहा, वो छोर छुड़ा कर चला गया
हम दोनों थे दो रंग मगर, मिलके फिर हम एक बने
मैं अब भी तुमसे रंगा हुआ, पर रंग हमारा छुट गया
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रिश्ते भी पौधो जैसे हैं, दोनों में कोई फर्क नही
दोनों को लगती भूख प्यास, दोनों को बनाना पड़ता है
पौधो को बीमारी से जैसे, रिश्तो को ज़माने से
कैसे भी हो मुमकिन, दोनों को बचाना पड़ता है
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अविनाश सिंह राठौर
१४ सितम्बर २०१२