इक बिंदिया, काजल, इक पायल,
इक बिंदिया, काजल, इक पायल, कुछ और निशानी रक्खी है
अब भी तेरे आने की, उम्मीद बचा कर रक्खी है
सुने घर में दीवारों से, कब तक कौन करे बातें
इस बाबत, इक कोने में,तेरी तस्वीर लगा कर रक्खी है
कुछ तेरी, कुछ मेरी बातें, अब भी गुंजा करती है
लम्हों की संदूकी में,तेरी याद सजा कर रक्खी है
कोई और नही जचता, काफीर सी निगाहों में मेरे
बस तेरे तस्सवुर को, पलकों ने रजा दी है
अविनाश सिंह राठौर
१९ अप्रैल २०१३
अब भी तेरे आने की, उम्मीद बचा कर रक्खी है
सुने घर में दीवारों से, कब तक कौन करे बातें
इस बाबत, इक कोने में,तेरी तस्वीर लगा कर रक्खी है
कुछ तेरी, कुछ मेरी बातें, अब भी गुंजा करती है
लम्हों की संदूकी में,तेरी याद सजा कर रक्खी है
कोई और नही जचता, काफीर सी निगाहों में मेरे
बस तेरे तस्सवुर को, पलकों ने रजा दी है
अविनाश सिंह राठौर
१९ अप्रैल २०१३